आकर्षण का नियम (Law of attraction) कहता है कि हम जो भी सोचते हैं उसे अपने
जीवन में आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वो चीज अच्छी हो या बुरी।
उदाहरण के लिए: --- अगर कोई सोचता है कि वो हमेशा परेशान रहता है, बीमार रहता
है और उसके पास पैसों कि कमी रहती है तो असल जिंदगी में भी ब्रह्माण्ड घटनाओं
को कुछ ऐसे सुनिश्चित करता है कि उसे अपने जीवन में परेशानी, बीमारी और तंगी
का सामना करना पड़ता है।
वहीँ दूसरी तरफ अगर वो सोचता है कि वो खुशहाल है, सेहतमंद है और उसके पास खूब
पैसे हैं तो असल जीवन में भी उसे खुशहाली, अच्छी सेहत, अच्छे सम्बन्ध और
समृद्धि देखने को मिलती है।
“हम जो सोचते हैं, वो बन जाते हैं”
-भगवान गौतम बुद्ध
“हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि हम
क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, और वे दूर तक यात्रा करते हैं”
-स्वामी विवेकानंद
जो लोग आकर्षण के नियम को मानते हैं, वे समझते हैं कि सकारात्मक सोचना कितना
ज़रूरी है…वे जानते हैं कि हर एक नकारात्मक विचार हमारे जीवन को सकारात्मकता
से दूर ले जाता है और हर एक सकारात्मक विचार खुशियां लाता है।
किसी ने कहा भी है, ”अगर इंसान जानता कि उसकी सोच कितनी शक्तिशाली है तो वो
कभी नकारात्मक। नहीं सोचता !”
पर क्या हमेशा सकारात्मक सोचना संभव है ?
यहीं पर काम आते हैं हमारे लेकिन, किन्तु, परन्तु...
दोस्तों, वैसे तो ये शब्द अधिकतर नकारात्मक सन्दर्भ में प्रयोग होते हैं ..
उदाहरणार्थ हम लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं :
--- मैं सफल हो जाता लेकिन...
--- सब सही चल रहा था किन्तु...आदि ।
पर हम इन शब्दों का प्रयोग नकारात्मक वाक्यों के अंत में करके उन्हें
सकारात्मक में बदल सकते हैं।
कुछ उदाहरणोंसे समझते हैं :---
जैसे ही आपके मन में विचार आये, “दुनिया बहुत बुरी है ” तो आप इतना कह कर या
सोच कर रुके नहीं,
तुरंत realize करें कि आपने एक नकारात्मक वाक्य बोला है इसलिए तुरंत सावधान हो
जाएं ..
और वाक्य को कुछ ऐसे पूरा करें----
”दुनिया बहुत बुरी है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं, बहुत से अच्छे लोग समाज
में अच्छाई का बीज बो रहे हैं और सब ठीक हो रहा है “
कुछ और उदाहरण देखते हैं :-- मैं पढ़ने में कमजोर हूँ,
लेकिन अब मैंने मेहनत शुरू कर दी है और जल्द ही मैं पढ़ाई में भी अच्छा हो
जाऊँगा।-
*मेरा boss बहुत -------है,
पर धीरे -धीरे वो बदल रहे हैं और उनको ज्ञान भी बहुत है, मुझे काफी कुछ सीखने
को मिलता है उनसे।
*मेरे पास पैसे नहीं हैं,
लेकिन मुझे पता है मेरे पास बहुत पैसा आने वाला है, इतना कि न मैं सिर्फ अपने
बल्कि अपने अपनों के भी सपने पूरे कर सकूँ।-
*मेरे साथ हमेशा बुरा होता है,
लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से सब अच्छा अच्छा ही हो रहा है, और
आगे भी होगा।
*मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही,
परंतु अब मौसम शादियों का है, भाग्य ने उसके लिए बहुत ही बेहतरीन रिश्ता सोच
रखा होगा, जो जल्द ही तय होगा।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात है - ये realize करना कि मन में एक नकारात्मक विचार
आया और तुरंत सावधान हो कर ...
इसे “लेकिन” लगा कर सकारात्मक में बदल देना ।
बस एक सकारात्मक वाक्य जोड़ना है और हमारा अवचेतन मन उसे ही सही मानेगा और
ब्रह्माण्ड हमर जीवन में वैसे ही अनुभव प्रस्तुत करेगा !
ये तो आसान लग रहा है !!
हो सकता है ये बड़ा आसान लगे, कुछ लोगों के लिए वाकई में हो भी, पर अधिकांश
लोगों के लिए विचारों को नियंत्रित करना और उनके प्रति जागरूक रहना
चुनौतीपूर्ण होता है।
जैसे तमाम चीजों को अभ्यास से सही किया जा सकता है, विचारों को भी अभ्यास से
सकारात्मक विचारों में ढाला जा सकता है ।
सकारात्मक रहें प्रसन्न रहें तरक्की करें ।
khushboo jain monu.
जीवन में आकर्षित करते हैं, फिर चाहे वो चीज अच्छी हो या बुरी।
उदाहरण के लिए: --- अगर कोई सोचता है कि वो हमेशा परेशान रहता है, बीमार रहता
है और उसके पास पैसों कि कमी रहती है तो असल जिंदगी में भी ब्रह्माण्ड घटनाओं
को कुछ ऐसे सुनिश्चित करता है कि उसे अपने जीवन में परेशानी, बीमारी और तंगी
का सामना करना पड़ता है।
वहीँ दूसरी तरफ अगर वो सोचता है कि वो खुशहाल है, सेहतमंद है और उसके पास खूब
पैसे हैं तो असल जीवन में भी उसे खुशहाली, अच्छी सेहत, अच्छे सम्बन्ध और
समृद्धि देखने को मिलती है।
“हम जो सोचते हैं, वो बन जाते हैं”
-भगवान गौतम बुद्ध
“हम वो हैं जो हमें हमारी सोच ने बनाया है, इसलिए इस बात का ध्यान रखिये कि हम
क्या सोचते हैं. शब्द गौण हैं. विचार रहते हैं, और वे दूर तक यात्रा करते हैं”
-स्वामी विवेकानंद
जो लोग आकर्षण के नियम को मानते हैं, वे समझते हैं कि सकारात्मक सोचना कितना
ज़रूरी है…वे जानते हैं कि हर एक नकारात्मक विचार हमारे जीवन को सकारात्मकता
से दूर ले जाता है और हर एक सकारात्मक विचार खुशियां लाता है।
किसी ने कहा भी है, ”अगर इंसान जानता कि उसकी सोच कितनी शक्तिशाली है तो वो
कभी नकारात्मक। नहीं सोचता !”
पर क्या हमेशा सकारात्मक सोचना संभव है ?
यहीं पर काम आते हैं हमारे लेकिन, किन्तु, परन्तु...
दोस्तों, वैसे तो ये शब्द अधिकतर नकारात्मक सन्दर्भ में प्रयोग होते हैं ..
उदाहरणार्थ हम लोगों को यह कहते हुए सुनते हैं :
--- मैं सफल हो जाता लेकिन...
--- सब सही चल रहा था किन्तु...आदि ।
पर हम इन शब्दों का प्रयोग नकारात्मक वाक्यों के अंत में करके उन्हें
सकारात्मक में बदल सकते हैं।
कुछ उदाहरणोंसे समझते हैं :---
जैसे ही आपके मन में विचार आये, “दुनिया बहुत बुरी है ” तो आप इतना कह कर या
सोच कर रुके नहीं,
तुरंत realize करें कि आपने एक नकारात्मक वाक्य बोला है इसलिए तुरंत सावधान हो
जाएं ..
और वाक्य को कुछ ऐसे पूरा करें----
”दुनिया बहुत बुरी है, लेकिन अब चीजें बदल रही हैं, बहुत से अच्छे लोग समाज
में अच्छाई का बीज बो रहे हैं और सब ठीक हो रहा है “
कुछ और उदाहरण देखते हैं :-- मैं पढ़ने में कमजोर हूँ,
लेकिन अब मैंने मेहनत शुरू कर दी है और जल्द ही मैं पढ़ाई में भी अच्छा हो
जाऊँगा।-
*मेरा boss बहुत -------है,
पर धीरे -धीरे वो बदल रहे हैं और उनको ज्ञान भी बहुत है, मुझे काफी कुछ सीखने
को मिलता है उनसे।
*मेरे पास पैसे नहीं हैं,
लेकिन मुझे पता है मेरे पास बहुत पैसा आने वाला है, इतना कि न मैं सिर्फ अपने
बल्कि अपने अपनों के भी सपने पूरे कर सकूँ।-
*मेरे साथ हमेशा बुरा होता है,
लेकिन मैं देख रहा हूँ कि पिछले कुछ दिनों से सब अच्छा अच्छा ही हो रहा है, और
आगे भी होगा।
*मेरे बच्चे की शादी नहीं हो रही,
परंतु अब मौसम शादियों का है, भाग्य ने उसके लिए बहुत ही बेहतरीन रिश्ता सोच
रखा होगा, जो जल्द ही तय होगा।
यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात है - ये realize करना कि मन में एक नकारात्मक विचार
आया और तुरंत सावधान हो कर ...
इसे “लेकिन” लगा कर सकारात्मक में बदल देना ।
बस एक सकारात्मक वाक्य जोड़ना है और हमारा अवचेतन मन उसे ही सही मानेगा और
ब्रह्माण्ड हमर जीवन में वैसे ही अनुभव प्रस्तुत करेगा !
ये तो आसान लग रहा है !!
हो सकता है ये बड़ा आसान लगे, कुछ लोगों के लिए वाकई में हो भी, पर अधिकांश
लोगों के लिए विचारों को नियंत्रित करना और उनके प्रति जागरूक रहना
चुनौतीपूर्ण होता है।
जैसे तमाम चीजों को अभ्यास से सही किया जा सकता है, विचारों को भी अभ्यास से
सकारात्मक विचारों में ढाला जा सकता है ।
सकारात्मक रहें प्रसन्न रहें तरक्की करें ।
khushboo jain monu.
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