सफलता तो एक सफर
सफलता तो एक सफर है मंजिल नहीं .
यह तो लगातार बढते रहने का,पाते रहने का नाम है .
अगर आपने एक संस्थान खोल दिया तो वहा तक ही सिमित मत रहो ,उसको और आगे बढाओ .
जब तक जिन्दा हो सृजन करते रहो .सृजन करते रहोगे तो जीवन मे जीने का लक्ष्य रहेगा और सृजन ही अगर बंद कर दोगे तो आज मरे या कल मरे क्या फर्क पड़ना है .
कल भी सुबह उठे ,दुकान गए ,वही काम किया ,शाम को आये और सो गए .
कल भी यही किया ,आज भी यही किया और कल भी यही करेंगे .
अगर हमारे पास कुछ लक्ष्य नहीं है ,कुछ और नया करने के लिए नहीं है तो क्या फर्क पड़ता है कल तक जिए,आज जिए या दस बीस साल और जिए .
तुम्हारी जिंदादिली की , जिन्दगी की कसौटी इसी मे है की हम लोग ,हमेशा जीत पर विश्वाश करे ,हमेशा आगे बढ़ने पर विश्वास करे .
आगे बढते बढते विफल भी हो जाए तो कोई गम नहीं .
हो गए तो हो गए .....
जो आदमी चलेगा ,वही तो ठोकर खाकर नीचे गिरेगा .जो चलेगा ही नहीं वह कहा गिरेगा ?
माना हम यहाँ से वहा तक जायेंगे..जायेंगे तो खतरा तो है की कही पाँव फिसलकर गिर सकते है .
अगर हम ये सोचू की कौन खतरा मोल ले पाँव फिसलने का ,तो हम वही बेठे रहेंगे .
निट्ठला आदमी ना तो गिरेगा और न कही पंहुचेगा .
अगर हमें साइकिल चलाना सीखना है तो दो चार बार साइकिल से गिरना भी होगा .
जिस आदमी ने सोचा की साइकिल चलाना सीखूंगा और गुटने छिल गए तो ..?
जहा तक दो चार बार गुटने नहीं छिले ,वहा आज तक कोई साइकिल चलाना सीख ही नहीं पाया .
माँ के पेट से कोई मजबूत हा कर नहीं आता .
बच्चा तब मजबूत होता है जब वह माँ की गोद से उतरकर जमीं पर चलता है और चलते -चलते कभी वाह गिरता है ,कभी लुढकता है ,कभी माथे पर चोट लगती है ..बच्चे का निर्माण ऐसे ही होता है .
ज्यादा प्यार से बच्चे केवल बिगड़ते है .
खुद की ज्यादा परवाह भी हमें बहुत बार रिस्क उठाने से रोकती है पर कठिन परिस्थितियों मे ही तो जीवन का निर्माण होता है .
रिस्क उठाते चलो काम करते चलो और सफलता के ऊँचे पायदानो को पाते चलो .
इसलिए कही रुको मत बढते चलो चलते चलो की चलना ही जिन्दगी है .
सफलता तो एक सफर है मंजिल नहीं .
यह तो लगातार बढते रहने का,पाते रहने का नाम है .
अगर आपने एक संस्थान खोल दिया तो वहा तक ही सिमित मत रहो ,उसको और आगे बढाओ .
जब तक जिन्दा हो सृजन करते रहो .सृजन करते रहोगे तो जीवन मे जीने का लक्ष्य रहेगा और सृजन ही अगर बंद कर दोगे तो आज मरे या कल मरे क्या फर्क पड़ना है .
कल भी सुबह उठे ,दुकान गए ,वही काम किया ,शाम को आये और सो गए .
कल भी यही किया ,आज भी यही किया और कल भी यही करेंगे .
अगर हमारे पास कुछ लक्ष्य नहीं है ,कुछ और नया करने के लिए नहीं है तो क्या फर्क पड़ता है कल तक जिए,आज जिए या दस बीस साल और जिए .
तुम्हारी जिंदादिली की , जिन्दगी की कसौटी इसी मे है की हम लोग ,हमेशा जीत पर विश्वाश करे ,हमेशा आगे बढ़ने पर विश्वास करे .
आगे बढते बढते विफल भी हो जाए तो कोई गम नहीं .
हो गए तो हो गए .....
जो आदमी चलेगा ,वही तो ठोकर खाकर नीचे गिरेगा .जो चलेगा ही नहीं वह कहा गिरेगा ?
माना हम यहाँ से वहा तक जायेंगे..जायेंगे तो खतरा तो है की कही पाँव फिसलकर गिर सकते है .
अगर हम ये सोचू की कौन खतरा मोल ले पाँव फिसलने का ,तो हम वही बेठे रहेंगे .
निट्ठला आदमी ना तो गिरेगा और न कही पंहुचेगा .
अगर हमें साइकिल चलाना सीखना है तो दो चार बार साइकिल से गिरना भी होगा .
जिस आदमी ने सोचा की साइकिल चलाना सीखूंगा और गुटने छिल गए तो ..?
जहा तक दो चार बार गुटने नहीं छिले ,वहा आज तक कोई साइकिल चलाना सीख ही नहीं पाया .
माँ के पेट से कोई मजबूत हा कर नहीं आता .
बच्चा तब मजबूत होता है जब वह माँ की गोद से उतरकर जमीं पर चलता है और चलते -चलते कभी वाह गिरता है ,कभी लुढकता है ,कभी माथे पर चोट लगती है ..बच्चे का निर्माण ऐसे ही होता है .
ज्यादा प्यार से बच्चे केवल बिगड़ते है .
खुद की ज्यादा परवाह भी हमें बहुत बार रिस्क उठाने से रोकती है पर कठिन परिस्थितियों मे ही तो जीवन का निर्माण होता है .
रिस्क उठाते चलो काम करते चलो और सफलता के ऊँचे पायदानो को पाते चलो .
इसलिए कही रुको मत बढते चलो चलते चलो की चलना ही जिन्दगी है .
"एक रास्ता है जिन्दगी
जो थम गए तो कुछ नहीं "
.मोनु एस जैन (MONU S JAIN )
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