Tuesday, 30 June 2015

बेहतर जीवन के लिए बनाये सकारात्मक नजरिया

सफलताए नजरियों का ही तो परिणाम होती है .
जितना ऊँचा लक्ष्य ,उतनी अधिक सफलता .
अपनी सोच को विशाल रखो और अपने नजरिये को बेहतर बनाओ ...अपना आदर्श किसी अच्छे व्यक्ति को बनाओ .
वैसे हर इंसान की एक सहज प्रवृति होती है इर्ष्या की ...वह किसी और से नहीं तो अपने पडोसी से हो जलेगा के मेरा मकान एक मजिल का है और उसका तीन मंजिल का ...पर सोचिये इस टाइप की ईर्ष्या से आपको क्या हासिल होगा ..?
ज्यादा से ज्यादा यह की आप आपके मकान को उसके जेसा तीन मंजिल का बना लोगे बस .

"यदि ईर्ष्या करनी ही है तो किसी टाटा बिडला अम्बानी से करो ताकि तुम ऊँचे उठो तो दुनिया को पता  तो लगे :)
ईर्ष्या करनी जरुरी ही लगती है आपको तो महावीर,राम ,कृष्ण से करो ताकि यदि राम न भी बन पाओ तो कम से कम तुलसी तो बन ही जाओगे ,कृष्ण तक न पहुच पाए तो भी कबीर तक तो पहुच ही जाओगे ."

आदर्श ऊँचे रखे ..सफलताए ,असफलताओं से ही जन्म लेती है .गुलाब उगने से पहले दस दस कांटे उग आते है .
याद रखिये बिना चट्टानों को पार किये झरनों तक नहीं पहुंचा जा सकता .
बिना बाधाओं के सफलता नहीं मिलती .
लोग आलोचना करेंगे ,टिपण्णी करेंगे,चुनोती देंगे और चलते हुए को लंगडी देकर गिराएंगे भी ..तुम सोच लो तुम्हे क्या करना है ..........
सुननी सबकी है पर करनी अपने मन की है .
अपना खुद का फैसला आप खुद करे .
                                       
                                        हम है अपने भाग्य विधाता खुद अपना निर्माण करे .


जितना ऊँचा लक्ष्य ,उतनी ऊँची सफलता ..उतनी ही कड़ी मेहनत और वेसी ही कार्य पद्धति .
अगर आप शुरू से ही सकारत्मक नजरिया लेके चलते हो अगर आप शुरू से ही रेंक का मानस लेके चलते हो तो अवश्य ही रेंक प्राप्त करोगे .
फिर भी अगर प्रथम रेंक न पा सके ,तो प्रथम श्रेणी से तो आपको दुनिया की कोई ताकत नहीं रोक सकती .
आपको किस मुकाम पर पहुंचना है ,इसका निर्णय आप स्वयं करे .
व्यक्ति स्वयं का निर्णायक स्वयं बने .
हाथो की लकीरों को देखने दिखाने की बजाय अपने मेहनत अपनी बेहतर सोच से अपने हाथ की रेखाए खुद खींचो .
तुम ऐसा पुरुषार्थ करो की भाग्य स्वयं तुम्हारी हथेली पर बेहतर परिणाम लिख जाए ..:)
.मोनु एस जैन (MONU S JAIN )

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